निगाह-ए-इश्क़ – भाग 4|Love story in Hindi

ये कहा गया हे ,लिखा हुआ हे के जोड़े आसमान में बनते हे। हर इंसान का कहीं ना कहीं कोई ना कोई साथी इस दुनिआ में हे। और जब  वो मिलते हैं, तो कायनात में  गीत गूंज ते हे। उसने भी तब इस बात पे यकीन किया जब उसने उसे देखा, पहली बार। ” Love story in Hindi के इस भाग में मुलाकात होने जा रही थी दो प्रेमिओं की।  

दोस्तों अगर आप पहलीबार यहाँ आए हे तो में आपसे आग्रह करूँगा के कहानी में आगे बढ़ने से पहले कहानी के पिछले भाग यहाँ दिए गए लिंक पे क्लिक करके पढ़ लीजिये । 

कहते हे जब हमे प्यार होता हे तो दिल अपने साथी के एक झलक भर पाने को बेताब रहता हे। ऐसा ही कुछ हाल था बानी का। नजाने उसकी निगाहें किसके तलाश में थी ?
 
“लगता हे हवाओं से कूछ गेहरा नाता हे आपका। ये आवाज़ पिछेसे आयी थी। और आवाज़ में वो कशिश नहीं थी जो मेरे नजरों को मजबूर कर सके एक दफा पीछे मूड ने के लिए। बेहरहाल मेने नज़र अंदाज़ करना ही सही समझा। 
 
“तो अब आपके आंखे कैसी हैं”?
 
ये सवाल अपने आप में ही एक बड़ा जवाब था, मेरे उन अनगिनत सवालों का। मेने नजाने कितने सवालों के साथ अपने पास में खडे उस सक्ख्स को देखा। आखिर कौन हो तुम जेहन से ये सवाल निकले इससे पहले ही वो अंजनसा लगने वाला सक्ख्स बोल उठा -” जी माफ़ करियेगा कल आपके आँखों में कचरा गिरा था तो में पानी लेने गया था। पर वापस आके देखा तो आप वहां थी नेही।
 
माफ़ करिये मेरे वजेसे आपको इंतजार करना पड़ा। तो अब आपकी आंखे कैसी हैं ?”

 
 
बिलकुल वही आवाज थी कानो में जो कल से गूंज रही थी। आपका सुक्रिया कैसे अदा करूँ ? ये केहने  के साथ ही में थोड़ा खुद को असहज मेहसूस किया, आखिर कार वो मेरे सामने था।
 
आप को याहाँ देखा तो सोचा के आपसे आपके हाल के वारेमे पूछ लूँ।  बात को बिच में ही रोकते हुए में बोल बैठी – आप अचानक यहाँ कैसे ? मेने अक्सर काईन लड़को को लड़कियों का पीछा करते हुए देखा हे। कहीं आप भी उन्ही मेंसे तो नहीं ?
 
जी नेही ऐसा कुछ नहीं हे।  बात जरसल ये थी के
 
तभी अचानक पिछेसे अपूर्वा आके वोला, अजी अब क्या होगया हमारे साहब को ? बोल रहेथे हम तो गाड़ी में बैठेंगे हमारा मन नहीं करता के घूमने का। और यहाँ हम से छुप के बाते की जारही हे। अपूर्वा के ये सब्द से हम दोनो थोडेसे असहज हो उठे। ऐसे परिस्तिथि में आप वहां से पीछे नहीं हट सकते, हे ना ?
 
हालत को थोडासा सहज रखने के लिए मेने थोडासा मुस्कुरा दिया। तिथि को बी अब ये बात समझ में आने लगीथी के मेरे ये मुस्कराहट वे वजह तो नहीं होसकते। मेने काईन बार अपने ज़ज़्बातों को बेआबरू होने से रोकने की कोशिश की पर नाकाम होती गयी।
 
वैसे अपूर्वा तुमने अपने दोस्त का नाम नहीं बताया हमे, तिथि के ये सवाल थोडे पल की  खामोसी के साथ आईथी। ख़ामोशी को तोड़ते हुए अपूर्वा कुछ बोले इससे पहले किसी और की आवाज़ ने हमारा ध्यान अपने और खींच लिया। 
 
“मेरा नाम ध्रुव हे, फिर कुछ देर की खामोसी। शुक्र हे इन समुद्री हवाओं का जो बेमतलब ही खामोसिओं को तोड़े जारही थी। लगा  जैसे ये  हवाएं ही थी जो सारे सवालों के जवाब जानती थी।
 
ये शुरुआत थी एक सफर की जिससे नाहीं मेने और नाहीं ध्रुव ने सुरु किया था। ये अब मायने नहीं रखता था के ये सफर कैसे सुरु हुआ ,बस सुरु होना ही सब कुछ था। अजीबसी एक बुदबुदाहट कानो के पास सुनाई दे रहीथी मुझे ,गौरसे सुनने पर यकीं हुआ के ये आवाज़ तो मेरे अंदर चल रहे लाखों करोडो अजीबसी एहसासों की थी।
 
इन्हे जैसे मानो किसीने मेरे खिलाप बगाबत करने की पेशकस करदी हो। मेरे ही जज़्बात मेरे ही आपे से बाहार थी। ऐसे में अपूर्वा ने बातों के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए कहीं खाने जाने का प्लान बनाया। अब धीरे धीरे हम चारों की दोस्ती होने लगी थी। सच कहूं तो मेरे दील में ध्रुब को लेके अनगिनत सवाल उठ रहेथे।
 
ऐसे सेहर जहाँ दो पल रुकने का भी समये नहीं होता लोगों के पास, बहां किसी के मदत करना, वो भी बिना जान पेहचान के ? सबलों से घिरी इस माहौल में दो पल दील की सुन लेती हूँ। आखिर वक़्त हे मेरे पास सवालों के लिए। पर सायद ये पल कल को ठहरेंगे  नहीं।
 

हम सब पास में हि एक रेस्टरान्ट में खाना खाने जातें हे। दोस्ती के नए आयाम भी बनने लगतें हे बीते वक़्त के साथ। आखिर यहाँ क्यों आना हुआ ? मेने धीरेसे डाइनिंग टेबल में अपनी पेहली  छोटी मगर मोटी  सवाल पेश करदी। 

जरासल में और अपूर्बा दोनों बचपन के दोस्त हे। और अपूर्बा  के पापा एक मल्टी नेशनल कंपनी मे काम करतें हे। और मेरे पिताजी का भी अपना बिज़नेस हैं। और ग्रेजुएशन के बाद अपने पेरो पे खड़े होने के लिए हम मुंबई आए। मुंबई में बैचलर्स को घर मिलना बेहत मुश्किल हे , पर हमने किसी तरा ये फ्लैट किराये पे ले लिया।

बातोसे तो ध्रुब बहोत ही सांत स्वभाब का लड़का लग राहाता। फिर धीरे धीरे सवाल जबाबों का सिलसिला चलता रहा। तिथि ने सवालों के सिलसिले को रोकते हुए खाने की मेनू को मुझे थमा दिया। कुछ ही देर में हम सब खाने में मसगुल हो उठे। खाने के बाद मुंबई घूमने का दौर सुरु हुआ, दोस्ती का आलम कुछ ऐसा जमा के वक़्त का ध्यान ही नहीं रहा।

रात के 11 बजे हम फ्लैट में पहंचे तो हम सब बहोत थक चुके थे। आज ध्रुब को जानने का मौका मिला। लड़का आछा हे। हमे हमारे रूम में छोड़ के वो दोनों अपने फ्लैट में चले गए। में बस फ्रेश होने के लिए जाने ही वाली थी के अचानक मेने देखा के मेरे पास ध्रुब का रूमाल रह गया था।

सच कहूं तो लौटा ने का मन नहीं था, पर फिर इरादा बदला तो लौटा ने उनके फ्लैट में गयी। वहां पहंच के देखा तो फ्लैट के अंदर से किसी लड़की की आवाज आ रही थी। थोड़ा और करीब गया तो वो आवाज मेरे करीब जाने के साथ और भी साफ तरीके से मुझे सुनाई दे रही थी। जैसे ही मे दरवाजे के करीब गयी सुनने के लिए तो वो लड़की की आवाज़ एक झटकेसे बंद होगयी। और  तभी अचानक ध्रुब ने दरवाजा खोला। 

कौन थी वो लड़की ,क्या था उस आवाज़ के पीछे का राज़। जानेगे कहानी के अगले भाग में

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