मुंबई सेहर अपने साथ नजाने कितने सपनो को समेटे हुए चल रहा हे, ये सायद ही कोई बयां कर पाए। मेरे मुंबई पहंचने के बाद लता दीदी(हमारे बड़े ताऊजी की बेटी ) मुझे लेने आयी। मज़बूरी भरे लहजे में उन्होंने मुझे गले लगाया।
दोस्तों कहानी में आगे बढ़नेसे पहले में आपसे आग्रह करूँगा के अगर आपने कहानी का पहला भाग नहीं पढ़ा तो कृपया यहाँ क्लिक करके पहला भाग पढ़ लीजिये – निगाह-ए-इश्क़ – भाग 1| Love story in Hindi
उनके लहजे से ये साफ था के मेरा उनके वहां रुकना महज एक मज़बूरी ही थी बस। गाऊँ में पिताजी के उनपे बहोत एहसान थे। पिताजी के मदत से ही दीदी की सादी बड़े धूम धाम से हुयी थी। पर अचानक ताऊजी के गुजर जाने के बाद दीदी हम सब से दुरी बनाने लगी।
खेर मेरे लिए ये मायने रखता था की में कैसे अपने सपनो को पूरा कर सकूँ। कुछ ही महीनो में मुझे मुंबई को जानने का मौका मिला। रफतार को चुनौती पेस करते हुए इंसान। छोटेसे सेहर से आने के वाबजूद मेरे सपनो ने अपनी उड़ान नहीं छोड़ी।
एक प्राइवेट कंपनी जूनियर सॉफ्टवेयर डेवलपर की नौकरी लग गई थी। सुभे १० से लेके रात के 8 बजने तक ऑफिस में रहना पड़ता। लौटने पे दीदी के वो सक भरी निगाहों से किये गए सवाल, ऐसा लगता था कीमत सपनो से बड़ी हो गयी हो।
माँ की याद को दिल में रख के आंख बंद करके रहलेति थी। फिर लगा के दीदी के घर से रुक्सत होने का बक्त आगया हे। सायद वो भी रुक्सत होने के वजह से बड़े अछेसे वाकिफ थे ,इसीलिए जाते वक़्त ज्यादा सवाल जवाब नहीं हुआ। अब मेरी सफर मेरे कदमो के साहारे सुरु होचुकी थी।
सायद यही वो पल था जिसने मुझमे डर पैदा किया। पीछे लौट जाने को बोलती हुई आवाज़े रूह तक को गमज्यादा कर जाती थी। किसी दोस्त के पास मेरे लिए वक़्त नहीं था। या यूँ कहूं तो में अब किसी के वक़्त के काबिल न रही थी। जिंदगी मुझे अपनी असलियत दिखाने में लागीथि।
एक रोज की बात हे सुबह सुबह जल्दी जल्दी में ऑफिस के लिए निकल ही रहीथी के आंखोमे एक कचरा नजाने कहांसे आ गिरा। दो पल के लिए आंखे बंद हुई तो पानी के तलाश में बैग में हात डाला तो पता चला के पानी लाना तो में भूल गयी थी।
दर्द के बढ़ने के साथ ही एक हलकी सी गरम सांसे मेरे आँखों के क़रीब से बह गए। हालाकि दर्द अभी भी काम नहीं हुए थे पर दिमाग उसी बंद आंखोसे उस इंसान को ढूंढ रहीथी जिसने इस भागते हुए सेहर में दो लम्हा रुकने की हिमाकत कर डाली थी, वो भी मेरे लिए। क्या यहाँ कोई किसी की मदत कर सकता हे ?
“क्या आप ठीक हैं ?” ये लफ्ज़ पहली दफा सुनी मुंबई आने के बाद। कौन हे ये। कास में देखलेति अभी। बार बार मेरे दर्द कम करने के कोसिस में वो इंसान मेरे दिल में उतरता जा रहा था।
“रुकिए में पानी लेके आता हूँ “ये कह के वो सख्स पानी लेने गया ही था की मेरे एक दोस्त वहां आगयी। आँखों में पानी मारते ही ऐसा लगा की कोई सपना जैसे टुटा हो। वो सख्स गायब था। फिर भी आंखे एक बार उस सख्स को देखना चाहती थी जिसने बिना कोई जान पहचान मेरी मदत की।
पर वो नहीं लौटा। दिन भर ऑफिस में उसके वारेमे सोचती रही। उसके प्यार से बोले दो लफ्ज़ दिल को छूके रूह में उतर गयी थी।
“ओए बानी” (मेरा घरेलु नाम ) इस आवाज़ से ध्यान टुटा
घर नहीं जाना ? रात के 9 बजने वाले हैं। किसके यादों में खोये हो। मेरे रूम मेट ने पुछा।
नेही तो। ऐसी बात नहीं हे तिथि (मेरी रूम मेट ) बस ऐसे ही।
बस ऐसे ही ? ऐसे ही नहीं हे बानी जी। कुछ तो हे आपके जेहन में ,जो हमसे छुपाने की नाकाम कोशिश की जा रही हे।
उफ्फ आपकी ये दोस्ती भरी निगाहों से कैसे बचूं ? मैंने है के जवाब दिया। भले ही मैंने तिथि के सवालों को कुछ देर के लिए टाल दिया हो पर मेरे दिल की आवाज़ को टाल पाना मुश्किल हो रहा था मेरे लिए। और फिर तिथि की वो मुस्कान, उसका सामना कैसे करूँ?
“आप जिंदगी में अपने दोस्तों से कुछ भी छुपा नहीं सकते। मेरे आँखों में उस इंसान की तलाश को सायद तिथि ने भाँप लिया था। अपने आंखोसे हजारो सवाल लिए मुस्कुराना कोई तिथि से सीखे। “एक पराया सा लगने वाला सेहर आज नजाने क्क्यो अपनों जैसा लगने लगा था।
आखिर ऐसा क्यों ?
3 thoughts on “निगाह-ए-इश्क़ – भाग 2| Love story in Hindi”