क्या मुझे धीरे धीरे प्यार हो रहा था। अरे नहीं नहीं ये में क्या सोच रही हूँ। मुझे ये क्या होने लगा हे। तिथि के सवाल और उन सबालों के जवाब का मेरे पास न होना क्या ये किसी और इशारा करती हे ? Love story in Hindi के इस भाग में बात करेंगे कैसे एक अनजान सा लगने वाला सेहर आज अपना सा लगने लगा था।
दोस्तों अगर आपने Love story in Hindi के पहले दो भाग नहीं पढ़े तो यहाँ निचे क्लिक करके पढ़ सकते हे –
निगाह-ए-इश्क़ – भाग 1| Love story in Hindi
निगाह-ए-इश्क़ – भाग 2| Love story in Hindi
तो कहानी का ये भाग सुरु होता हे बिजलियों के कड़क ने से। मानो जैसे मुझे तिथि के सवालों के तीर से बचाने की कोसिश की जा रही हो। सवालों के सिलसिलें को ऐसे अधूरे हाल में छोड़के जाना पड़ता हे तिथि को। बारिश के बूंदे भी गिरने लगी मानो जैसे आज सबको जबाब चाहिए था।
ऐसा लगा जैसे बारिशें आज रुकेंगी नेहीं, जब तक में कोई जवाब न दे दूँ। पर जवाब तो मुझे भी चाहिए था। धीरे धीरे ख़यालों के दुनिया में में खोती गयी। ख़यालों के आगोश से बहार निकली तो देखा के आखिर कार बारिश थम गयी थी । उसे भी इस बात का एहसास होने चला था के जवाब किसी के पास नहीं।
बारिशों के थमने के बाद मानो जैसे एक सनाटा पसर गया हो। इतना सनाटा की दिल की बेचैन धड़कनो की आवाज साफ सुनाई दे सके। पीछे मूड़ के देखा तो, तिथि कब की सो गईथी। बस मेरे ही आँखों में नींद नहीं थी। जिसको देखा तक नहीं उसके लिए ये सब क्यों ?
फिरसे एक सवाल ? और जवाब किसी के पास नहीं।आखिर कर में भी नींद की तलाश में निकल गयी और कब नींद ने मुझे अपने आगोश में भर लिया पता नेही चला।
सुभे आंखे खुलने पर तिथि को किसीसे बात करते हुए देखा। बारिश के वजेसे सोसाइटी कंपाउंड में कल रात एक पेड़ गिरगया हे ऐसा तिथि का कहना था। खेर जो भी हो ऑफिस जाने के लिए तयार होना था, पर तिथि हे के बाते किये जारही हे। मेने तिथि को बुलाना मुनासिफ नहीं समझा।
तभी अचानक तिथि ने किसीको नमस्ते किया और दरवाजा बंद करते हुए एक आवाज ने उससे फिरसे रोक लिया। मेने ये सब नजर अन्दाज करना सही समझा। तिथि वापस आयी तो थोडेसे नाराजगी भरे लेहेजे से में पूछी “हमेसा मुझे तो बड़ा ज्ञान दिया जाता हे समये का , आज आपको क्या होगाया था जरा बताएगी।
” मेरे घुसे भरी लफ्ज़ो में जो प्यार की चुटकी थी उसे भांपते हुए तिथि ने बड़े ही प्यारसे जवाब दिया :- “हमारे पड़ोसी आये थे हमसे मिलने ,बस पडोसी धर्म नीभा रहीथी। ”
दरसल हमारे फ्लैट के पास में में ही एक फ्लैट खाली था ,तो उसीमे अपूर्वा नाम का लड़का किराये पे रहने आया था। और हमारे पडोसी होने के नाते तिथि से बातें कर रहा था।
अब चलो भी देर हो रही हे ,ये कहकर तिथि ने मुझे गले लगाया। ये जो दोस्त होते हे ना, उन्हें हमारी कमजोरी पता होती हे। झटसे मना लेतें हैं हमे।
ऑफिस में आज इतना शोर सराबा नेही था। तो तिथि के केहने पे हम लोग थोड़े समंदर किनारे घूमने चले गए। समंदर किनारे खड़े होके ऐसा लगा जैसे कोई मुझसे केह रहा हो, अपने सारे गमो को भूल के आज़ाद होजाओं। ये पराया सेहर आज मुझे अपना बनाने लगा था।

इसी बिच मेरे आंखे पीछे गयी तो मेने पाया तिथि किसी लड़के से हस हस के बाते कर रही थी। मेने ज्यादा ध्यान नेही दिया। समंदर की वो लेहेरे और हवाएं मुझे धीरे धीरे अपने गिरफ्त में ले रहीथी। दो पल सुकून से जी लेना चाहती थी। रोज के भागम भाग से अच्छी तरहा से वाकिफ थी में। इसीलिए थोड़ा खुल के साँस लेना चाहती थी।
“बानी इनसे मिलो ये हे अपूर्वा। हमारे नए पडोसी। सुबह जिसकी में बाते राहा था।”
तिथि की आवाज़ को हवाएं रोक रही थी। ठीकसे सुनाई तो नहीं देरहा था। क्यों के हवाओं शोर काफी तेज़ था। फिर भी मैंने तिथि के बोलने के लहजे को समझते हुए मुस्कुराके अपूर्वा को हेलो कहा। बाते सुरु करने के लिए अलफ़ाज़ों की कमी सी मेहसूस हो रहीथी। तभी अचानक तिथि अपूर्बा को कुछ दिखाने के लिए ले जाती हे। मेरा उनके साथ जाना मुझे उस वक़्त मुनासिफ नेही लगा। में बस चुप चाप हवाओं से गुफ्तुगू किए जा रही थी।
मुझे इंतजार था तो बस एक ही जवाब का। आखिर कौन था वो सख्स ? कहानी का अगला भाग निचे दिए गए लिंक से पढ़ सकते हैं।
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