इर्षा से मृत्यु | Short Stories For Kids in Hindi

बच्चो आपने कभी किसी से इर्षा किया हे ? जाहिर हे मनुष्य का स्वभाब हे, हो गया होगा। परन्तु क्या आप जानते हे इर्षा करने वाला ब्यक्ति धीरे धीरे खुद ही अपने पतन की और बढ़ता रहता हे। जबकि उसे भनक तक भी नहीं लगता। आज के Short Stories for Kids in Hindi के इस भाग में जानेगे कैसे एक मुर्ख घमंडी मेंढक इर्षा के चलते अपने परिबार को नष्ट कर देता हे।

ये कहानी हे मेंढक राज बलि की। बलि बेहद ही ताकत बर राजा था। उसके राज्य में सभी खुस थे। किसीको किसी चीज़ की कमी नहीं थी। प्रजा में बलि की बाह बाह भी होती थी। बलि के इसी तरक्की से उसीके कुछ सगे सम्बन्धी बड़े ही नाखुश थे।

वो बलि से हर बात में जलते थे। पर उसके लोकप्रियता के चलते बिद्रोह नहीं कर पाते थे। उनमेसे सबसे प्रमुख बलि का छोटा भाई सुकेतु हमेसा बलि से बदला लेने की ताक में बैठा रहता। उसकी इर्षा उसके चहरे पे साफ दिख रहा था।

एक बार एक लकड़ी का दुकड़ा कहींसे बह कर बलि के तालाब में आया। सुकेतु को वो लकड़ी का दुकड़ा बेहद पसंद था पर जैसे ही वो वहां पे बैठने को गया , उसे रोक दिया गया। ये बलि महाराज का नया सिंघासन हे ऐसा बोलके उसे वहांसे हटा दिया गया।

सुकेतु को ये बात बेहद बुरी लगी। वो इर्षा में ऊपर से निचे तक भर गया। अपने भाई को देख के खुस होने के बदले वो दुखी होगया। वो किसी भी हाल में उसे मारना चाहता था। उसके लिए उसने तालाब से बाहर जाके एक जेहरीले साप से मिला जिसका नाम भुजंग था।

सुकेतु ने भुजंग से कहा में एक ऐसा जगह जनता हूँ जहाँ पर तुम्हे बे हिसाब खाना मिलेगा। और वो उसे उस तालाब में ले गया जहाँ पे उसके सगे सम्बन्धी मित्र आदि सब रहते थे। इर्षा में अँधा हो चूका सुकेतु भुजंग को तालाब का रास्ता दिखा देता हे। बदलेमे भुजंग से उसको राजा बना नेका वादा लिया।

भुजंग ने बलि के राज्य में हमला कर दिया। देखते ही देखते हाहाकार मच गया। और भुजंग ने बलि के सारे परिबार को मार दिया। बलि अपने आखरी साँस तक भुजंग से लढा पर आखिर कर वो भी भुजंग से हार गया। उसके सरे सगे सम्बन्धी मर चुके थे।

तभी बलि को कमजोर देख सुकेतु अपने सेना को लेके उस तालाब में पहंचा और बलि को बंदी बना ने का आदेश दिया। बलि ने सुकेतु से कहा की सिर्फ एक इर्षा के चलते उसने एक हसते खेलते राज्य को नस्ट करदिया। और ये चेताबनी भी देता गया के अपनों को मारने के लिए गेरो की मदत लेने वाला कभी खुस नहीं रह पाता।

सुकेतु हसते हसते वोला में और भुजंग पक्के और सच्चे दोस्त हे। हम दोनों मिलके इस पुरे तालाब में राज खाएंगे। इतना बोलके ही उसने बलि को बंदी बना लिया।

कुछ दिन अपने सगे सम्बन्धी के साथ राज करने के बाद उसे एक दिन भुजंग मिलने आया। भुजंग को देख कर सुकेतु खुसीसे मित्र कहके मिलने आया पर भुजंग उसे धक्का देकर बोला हमारे बीच जो बात हुयी थी तुमने उसका मन नहीं रखा।

कैसी बात ? सुकेतु हैरान होक पुछा।

तुमने वादा किया था के तुम मुझे हर दिन एक मेंढक खाने को दोगे। पर दो दिन से में भूका हूँ। भुजंग घुसे से सुकेतु को बोलै।

पर तुमने तो बलि के सरे परिबार को मर दिया और खा गए। अब और मेंढक कहांसे आएंगे। सुकेतुने जवाब दिया।

इस पर भुजंग हस पड़ा और बोल उठा लगता हे तुम सत्ता के नशे में चूर हो गए हो। खुद को देखो तुम भी तो एक मेंढक हो। ये सुनते ही सुकेतु बोल पड़ा – क्या तुम मुझे खाना चाहते हो ? इस बात में भुजंग है पड़ा और बोलै – अरे नहीं नहीं में भला अपने मित्र को कैसे खा सकता हूँ। पर मुझे रोज के एक मेंढक मेरे घर भिजवा देना। में तुझे कुछ नहीं करूँगा।

सुकेतु समझ चूका था के इर्षा के चलते जो तीर उसने बलि पे चलाया था आज वो उसीके परिबार के तरफ लौट के आरा है हे। देख ते ही देखते तालाब के सारे मेंढक ख़तम होगये। सिर्फ सुकेतु बचा था। उसे अभी भी लगता था के भुजंग उसे नहीं खायेगा। पर अगले दिन सुबह जब भुजंग को खाना नहीं मिला तो वो सुकेतु से मिलने आया।

सुकेतु ने उसे बताया के तालाब में अब और मेंढक नहीं बचे। पर भुजंग की नजर अब सुकेतु पर आगयी थी। बिना बक्त गवाए उसने सुकेतु को निगल लिया। और पूरा तालाब जिसमे एक वक़्त पर मेंढको का राज हुआ करता था आज वो तालाब खली होचुका था।

तो बचो हमने इस कहानी से क्या सीखा ? भलेही हमारे अपनों के साथ हमारे कितने भी मत भेद हो पर उन को सुलझाने के लिए कभी किसी बहार के ब्यक्ति का सहारा मत लीजिये। कभी किसी से इर्षा मत करिये। क्यों के इर्षा में इंसान अपना सूज भुज खो देता हे। और अनजाने ही सही अपना नुकसान कर बैठता हे।

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