Hindi Novel | दूसरी दुनिया एक रहश्य भाग- 4

Hindi Novel सीरीज के इस भाग में एक ऐसी दास्ताँ से आप रुबरु होंगे जो आपको एक पल के लिए सही एक अलग ही दुनिया में ले जायेगा। कैसे इंसानी रूह का सौदा होता हे और उस सौदे के टूटने पर क्या अंजाम होता हे जानेगे दूसरी दुनिया एक रहश्य के भाग- 4 मैं। 

डॉक्टर मैं कहां हूं यह कौन सी जगह है ? यह तुम मुझे कहां ले आए ? ऐसे ही कुछ सवाल थे जब अरमान को होस आया। 

डॉक्टर पहले यह तो बताओ कि मैं हूं कहाँ  ? 
 
तुम मेरे घर में हो अरमान तुम्हें बहुत सारे चोट लगे हैं । पर कोई बात नहीं तुम ठीक हो जाओगे। मैं तुम्हें ठीक कर दूंगा। 
 
मुझे यह चोट कैसे लगे? 
 
एक लंबी कहानी है मेरे दोस्त ! तुम उस वक्त होश में नहीं थे। सब बताऊंगा पर पहले तुम ठीक हो जाओ।
 
तीन महीने बाद !
 
अरमान जिंदगी और मौत की उस दहलीज से वापस आया था जहां मैंने उसके लौटने की सारी उम्मीद छोड़ दी थी। उस रात उस हैवान ने अरमान की रूह को इतनी चोट पहंचाई की कोई आम इंसान होता तो वो दम तोड़ देता।
 
यह महज एक इत्तफाक नहीं हो सकता कि उस किताब को पढ़ने के बाद अरमान के पिता जी कहां गायब हो गए । हो सकता है कि उस किताब में कुछ ऐसी बातें लिखी हो जिन्हें समझ पाना मेरे बस के बाहर हो, लेकिन आज भी उस किताब में ऐसी कई सारी बातें दर्ज है जिनको समझना और जानना मुझे अब जरूरी लगने लगा था।
 
अरमान को इस हालत में देखना मेरे लिए अब मुश्किल होता जा रहा था । मेरे पूछे गए सवाल के बदले में उस प्रेत आत्मा ने अरमान के शरीर को तार तार कर डाला था। मुझे नहीं पता था कि मेरे सवालों की कीमत इतने ज्यादा होंगे।
 
आज उस बकिए को 3 महीने से भी ज्यादा वक़्त बीत चुके हैं। बड़ी मुश्किल से अरमान कुछ हद तक सही हुआ है। शायद मैं उससे माफी मांगने के लायक भी नहीं रहा। कभी-कभी हम ना चाहते हुए भी उस हद तक चले जाते हैं जहां से लौट के आ पाना हमारे लिए नामुमकिन हो जाता है।
 
धीरे-धीरे वक्त आगे बढ़ता गया।
 

अरमान को ठीक हुए 1 हफ्ते से भी ज्यादा वक्त हो चुका था। अब वह अपने घर लौट जाना चाहता था। लेकिन अभी भी उसके ज़ख्म हरे थे। चाह कर भी मैं उन जख्मों को पूरी तरह से ठीक नहीं कर पा रहा था। अरमान को छोड़ने में उसके घर गया। वापस आते वक़्त अरमान ने थोड़ी देर उसके पास बैठने को कहा।

बिना कुछ कहे मैं उसके पास थोड़ी देर बैठ गया। न जाने एक अजीबसी खामोशी छा गई थी। पहले भी वह घर किसी बिराने से कम नहीं था। लेकिन आज कुछ अलग ही खामोशी थी। 

मुझे माफ कर देना अरमान, मेरी वजह से तुझे तकलीफ उठानी पड़ी ! अगर मैं उस दिन खामोश रह जाता तो शायद आज तू इतने दर्द में ना होता। तभी अरमान ने मेरे कंधे पर अपना हाथ रख कर मुस्कुराते हुए मुझसे कहा मेरे दोस्त मैंने कहा था ना हर चीज की एक कीमत होती है । और तू मेरा दोस्त है और मैंने ये कीमत अपनी दोस्ती के लिए अदा की हे। तू दिल पर कोई भी बोझ मत रख अब सब ठीक है।
 
अरमान को उसके घर छोड़ने के बाद मैंने कुछ दिन अकेले में कहीं दूर जा कर घूम आने की सोची। कुछ पल अकेले में बिताना चाहता था। इस भीड़ भरी दुनिया से अलग कुछ पल अकेले सिर्फ अकेले।
 
दिल पर कहीं सारे बोझ थे। तो उन्हें हल्का करने के लिए मैं स्विजरलैंड चला गया। वहां पर दो-तीन हफ्ते बिताने के बाद भी मेरे दिल से वो बोझ हल्का नहीं हो रहा था। सबसे बुरी बात तो यह थी कि मैं किसी साइकैटरिस्ट के पास भी नहीं जा सकता था।
 
एक डॉक्टर होते हुए इन सारी बातों को किसी साइकेट्रिस्ट को बताना मेरे लिए बेवकूफी होती। सोचा समय के साथ सब धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा।
 
अपनी यादों के साथ में वहां से लौटने की तैयारी कर ही रहा था कि तभी अचानक एक रात मुझे अरमान के नंबर से कॉल आया । मेरे फोन उठाते ही अगले ओर से किसी की रोने की आवाज सुनाई दी। पहले तो मैंने नंबर चेक किया यह देखने के लिए कि कॉल अरमान का है या नहीं । लेकिन कॉल अरमान के मोबाइल से ही आया था।
 
पर रोने की आवाज किसी औरत की थी। पता नहीं चल पा रहा था कि वह औरत कौन है । रोते-रोते आवाज में सिर्फ इतना ही सुनाई दिया की अरमान को बचा लो वह उसे ले गई है, मेरे पूछने पर भी उस औरत ने मुझे अपना नाम नहीं बताया।
 
जीवन के हर मोड़ पर मैंने कुछ ना कुछ खोया था और आज मैं अपने दोस्त को खोना नहीं चाहता था। मेरे लाख पूछने पर भी उस औरत ने अपने बारे में कुछ नहीं बताया बस धीमी आवाज में इतना ही बोल पाई कि वक्त बहुत कम है।
 
मैं तुरंत ही वहां से निकला अरमान के घर। मुझे पता था यह जो कुछ भी हो रहा है इसके पीछे वजह मैं ही हूं। अगली सुबह जब में अरमान के घर पहुंचा तो मैंने देखा कि दरवाजे खुले हुए हैं और अरमान खून से लथपथ नीचे पड़ा है।
 
उसकी हालत बद से बदतर हो चुकी थी। अचानक उसकी पीठ पर गहरे जख्म बन गए थे। अरमान ने मुझे धीरे से अपने पास बुलाया और हल्की आवाज में मेरे कानों में बोल उठा सौदे को आधे में छोड़ कर आने का अंजाम देख लो डॉक्टर। तुम्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।

दूसरी दुनिया एक रहस्य
अगर तुम अपने दोस्त को जिंदा देखना चाहते हो तो तुम्हें फिर से इस सौदे को पूरा करना होगा। इतना ही बोल कर अरमान बेहोश हो गया। शायद सच में मेरे पास वक्त बहुत कम था। मेरी जिंदगी अब राख बन चुकी थी। मेरे अपने ही दोस्त को मैंने नर्क में धकेल दिया था।
 
और अब उसे कैसे बचाऊं इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं थी । अपने दोस्त को अपनी आंखों के सामने तड़प तड़प के मर ता हुआ देखना बहुत ही दर्द भरा था। एक डॉक्टर होते हुए भी अपने दोस्त के जख्मों को भर नहीं पा रहा था मैं।
 
कभी-कभी जिंदगी आपको ऐसे हालात में लाकर खड़ा कर देती है जहां पर आपको ना चाहते हुए भी उन लोगों की मदद लेनी पड़ती है जिन से दोबारा मिलना तक गवारा ना हो। हर्षिता दीवान, कहने को तो हम साथ में पढ़ते थे साथ में हमने डॉक्टर की डिग्री भी हासिल की लेकिन उसकी दिलचस्पी हमेशा से ही भूत प्रेत और नेगेटिव एनर्जी के बारे में ही थी।
 
कभी-कभी वो खुद इतना नेगेटिव बन जाती कि उसकी शक्ल तक देखना मुझे पसंद नहीं आता। पर ऐसी हालत में सिर्फ वही एक ऐसी लोती इंसान थी जो हमारी मदद कर सकती थी। मैने तुरंत अरमान को अपने गाड़ी में बिठाया और हर्षिता से मिलने निकल पड़ा।
 
सबसे बड़ी दिक्कत जो हमारे सामने थी वो थी उसे ढूंढना । 2 साल पहले उसकी मां के गुज़र जाने के बाद उसने अपना घर छोड़ दिया और उसके बाद वह कहां है यह किसी को भी नहीं पता। मैंने अपने पूरे फ्रेंड सर्कल में पता लगा लिया पर कोई भी ऐसा नहीं था जो यह बता सके कि हर्षिता दीवान कहां पर है । मुझे किसी भी हालत में उस तक पहुंचना था।
 
हर्षिता बचपन से ही अपनी नानी के घर में पली-बढ़ी थी । और मुझे यह अंदाजा था कि हो ना हो उसका पता शायद उसके नानी के घर में किसी को पता हो । मैंने तुरंत ही अपनी गाड़ी को हर्षिता के नानी के घर की ओर मुड़ा और मेरा अंदाजा सही निकला । वहां जाकर हमें हर्षिता का फोन नंबर और पता मिला।
 
में तुरंत ही उस पत्ते पर निकल पड़ा। वहां पहंच कर मैने घर की घंटी बजाई पर दरवाजा खोलने कोई नहीं आया। लंबे समय तक इंतजार करने के बाद मैंने कॉल लगाना मुनासिब समझा। मैंने जैसे ही उस नंबर पर कॉल लगाया तो सामने से बहुत धीमी धीमी आवाज आने लगी।
 
आवाज इतनी धीमी थी कि अंदाजा लगा पाना मुश्किल हो रहा था कि सामने से कोई क्या बोल रहा है। गौर से सुनने पर मुझे सिर्फ इतना सुनाई दिया कि तुम गलत पते पर आ गए हो। और उसके हसने के अंदाजे से पता लग चुका था कि वो हर्षिता नहीं थी।
 
तभी अचानक दरवाजा खुला तो मैंने देखा कि मेरे सामने हर्षिता खड़ी थी, पर उसके हाथ में मोबाइल नहीं था। पर मेरे कानों में हंसने की आवाज बराबर आ रही थी। वो कौन थी जो हमारा पीछा साए की तरह कर रही थी। क्या हर्षिता हमारी मदत कर पाएगी। क्या था वो सौदा जो अधूरा रह गायाथा जानेंगे कहानी के अगले भाग में।

कहानी आगे जारी रहेगी। 

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